शुक्रवार, 4 जनवरी 2013

‘मुझे’ ज़िंदा रखना!

 'वीरा' को याद रखना

वो वीरा, वो दामिनी, वो अनामिका और वो निर्भया पूरे देश ने उसे नया नाम दिया, और पीड़ा की वक्त में उसके साथ खड़ा रहा। आज वो हमारे लिए किसी सीख से कम नहीं है और उसका संघर्ष किसी क्रांति से कम नहीं। दिल्ली में हुए गैंग रेप की इस पीड़ित छात्रा ने अस्पताल के बेड पर आईसीयू और वेंटीलेटर पर 13 दिनों तक खूब संघर्ष किया और अपनी जख्मों की सींचती हुई ये कहती रही की मुझें जिंदा रहना है..मुझे ज़िंदा रहना है। लेकिन उसकी इस पीड़ा से उस भगवान और उस खुदा का दिल भी पसीज़ गया और उसने उसे अपने पास बुला लिया। वो वीरा सही मायने में उस दुनिया में लौट गई जहां उसे इस कष्ट से मुक्ति मिल पाएगी और उसे वो प्यार मिल सकेगा जिसकी वो हकदार है।

वो वीरा चली गई नई दुनिया में, लेकिन अपने पीछे छोड़ गई करोड़ों लोगों के आंसू। इस वीरा को कोई नहीं जानता था, लेकिन उसके दर्द ने पूरे हिंदुस्तान को एक धागे में बांध दिया। और हर कोई कानून और समाज में बदलाव के लिए आंदोलन कर रहा है और डट कर मुकाबला करने को तैयार है। वीरा भले ही हमारे बीच नहीं है लेकिन हम सबके बीच उसकी संघर्ष की कहानी है और उसके वो दर्द हैं जो उसने सहे थे, वीरा ने ही हमें लड़ना सिखाया था और महिलाओं को उनकी सुरक्षा और सम्मान का हक मांगना सिखाया और आज वही वीरा हम से चीख चीख कर कह रही है कि मैं तो चली गई..लेकिन अब किसी और को दामिनी, अनामिका, निर्भया और वीरा मत बनने देना।
वीरा की आवाज खामोश हो चुकी है लेकिन वो कह रही है कि मुझे भूलना मत, मुझे हमेशा याद रखना और मैंने जो क्रांति की इबारत लिखी थी उसे आगे भी बुलंद करते रहना जिससे की हमारे देश में महिलाओं को सम्मान मिल सके और आने वाला वक्त भी हमें याद रखे और तुम हमें हमेशा के लिए अमर बनाए रखना। वीरा की ये आवाज़ हम सबके बीच गूंज रही है, और यही वजह है कि पूरा देश एकजुट होकर वीरा के लिए इंसाफ की मांग कर रहा है।

वीरा की मौत के बाद देश के प्रथम नागरिक प्रणब मुखर्जी, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और देश की सबसे शक्तिशाली महिला सोनिया गांधी ने भी दुख व्यक्त किया और महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने की बात कही। सोनिया गांधी ने यहां तक कहा कि वो एक महिला और मां होने के नाते इस दर्द को समझ सकती है, तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी तीन बेटियों का पिता होने का रोना रो चुके हैं तो शीला दीक्षित ने कहा कि उन्हे इस घटना पर शर्म भी आती है और दुख भी होता है। लेकिन बड़ी बात ये है कि जब इन्हें इस हादसे पर दुख है तो वो उस दिन सामने क्यों नहीं आए जब विजय चौक और राजपथ पर प्रदर्शनकारी लाठियां खा रहे थे, क्या देश में जुर्म के खिलाफ आवाज़ उठाना गुनाह है?

लेकिन वीरा की मौत ने पूरे हिंदुस्तान को झकझोर कर रख दिया है..और हर कोई अब आगे बढ़ कर इंसाफ के लिए आवाज़ उठा रहा है, लेकिन हमें भी अब इस जलती मशाल को बुझने से रोकना होगा जिससे कि जरुरत पड़ने पर इससे अंधियारे को दूर किया जा सके और देश में सभ्य समाज और कानून की स्थापना हो सके।
                                                                                                            (प्रभाकर चंचल)

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