बुधवार, 8 मई 2013

‘पिंजरे’ मेंता’ कैद सरकारी ‘तोता'



कोलगेट में सब के हाथ काले 
मीट्ठु जो कि हर दम अपने मालिक के नाम की माला जपता है..मालिक का गुणगान करता है..तो मालिक भी उसका ख्याल रखेगा ही...और जाहिर सी बात है कि अपने इस प्यारे मिट्ठु को सुरक्षित रखने के लिए वो हर संभव कोशिश करेगा....क्योंकि मालिक के दुश्मन ना जाने कब उस प्यारे से मिट्ठु को अपने कब्जे में कर ले...और उस बेजुबान का इस्तेमाल उसके मालिक के खिलाफ ही करने लगे...भला ऐसे में उस बेचारे मालिक के पास सबसे बड़ी मुश्किल अपने मिट्ठु को सुरक्षित रखने की होगी...औऱ ऐसे में उसके पास पिंजरे से अच्छी कोई चीज नहीं..जिसमें वो अपने मिट्ठु को बंद कर चैन की नींद सो सकता है....

जब बात सरकारी मिट्ठु यानी तोते की होगी तो उसका सुरक्षा कवच भी उतना ही स्टैंडर्ड होगा...और इस तोते का काम भी हाईफाई होगा....यहां मैं आपको किसी आम तोते के बारे में नहीं बता रहा हूं....तोते की जमात में शामिल हुए इस नए तोते का नाम है CBI CBI यानी देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी। इस तोते के पास हर घपले, घोटाले, गैर कानूनी वारदातों की जांच कर सच तक पहुंचने की जिम्मेदारी होती है...लेकिन अपनी स्वामी भक्ति में ये तोता इतना मस्त रहता है कि ये अपने काम में भी मालिक की चापलुसी करता जाता है। देश में हुए तकरीबन हर भ्रष्टाचार की जांच यही सरकारी तोता कर रहा है, लेकिन इन जांचों के नाम पर वो अपने मालिक को बचाने की भी पूरी कोशिश कर रहा है...और इसी वजह से देश की सबसे बड़ी अदालत ने देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी को नया नाम दिया है सरकारी तोतावो तोता जो हर दम स्वामी भक्ति में चूर रहता है औऱ सरकार की भाषा ही बोलता है।

अब तक जब कभी भी विपक्ष को सियासी रोटियां सेंकनी होती है..तब वो सीबीआई का मुद्दा उठाता है और इसे स्वतंत्र करने की मांग करता है...समाजसेवी अन्ना हजारे भी सीबीआई को स्वायत्त बनाने की लड़ाई लड़ चुके हैं। लेकिन इनके लिए सरकार के पास हर वक्त जवाब तैयार होता था, सरकारी मंत्रियों की जब भी जुबान खुलती थी तो वो कहते की सीबीआई स्वतंत्र है और उसकी जांच में कोई सरकारी हस्तक्षेप नहीं होता।

लेकिन जब से कोयला घोटाला केस में सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई और सरकार और घेरना शुरू किया है, तब से सरकार को कोई जवाब नहीं सूझ रहा है और सरकार के भीतर खलबली मची हुई है। देश की सबसे बड़ी अदालत इस बात से नाराज है कि आखिर मंत्रियों ने कोयला घोटाले में तैयार की गई स्टेटस रिपोर्ट देखी कैसे ? देखी तो देखी लेकिन इस रिपोर्ट में बदलाव किस अधिकार से करा दिया ? सीबीआई भी मान चुकी है कि उसने पीएमओ, कानून मंत्री समेत कई लोगों को ये रिपोर्ट दिखाई थी और उनकी सलाह पर ही रिपोर्ट की भाषा में बदलाव किए गए थे। लिहाजा अब सुप्रीम कोर्ट को सरकार और सीबीआई के इरादे नेक नहीं लग रहे हैं।

औऱ कोर्ट ने इस मामले में कानून के हथौड़े का इस्तेमाल कर सरकार और सीबीआई से कई सवाल पूछ डाले..और सीबीआई को सरकारी चंगुल से स्वतंत्र  करने के भी निर्देश दे दिए। अदालत की सख्त टिप्पणी पर सीबीआई ने तो निष्पक्ष जांच करने का भरोसा दिया है..लेकिन सीबीआई की कार्यप्रणाली में बदलाव होने और सरकार की मनः स्थिति साफ होने में कितना वक्त लगेगा ये तो पता नहीं...लेकिन इतना तो जरूर है कि कोर्ट की टिप्पणी ने विपक्ष को हमला बोलने और इस्तीफे मांगने का एक और धमाकेदार मौका जरूर दे दिया है।

लेकिन विपक्ष में बैठ सियासी धावा बोलने वाली पार्टियां ये बताने को कतई राजी नहीं है कि उन्होंने सीबीआई के मुद्दे पर सरकार को कोसने के अलावा कौन सा काम किया है ? इस वक्त विपक्ष में बीजेपी बैठी है, उसकी अगुवाई में NDA का शासन काल भी देश ने देखा है..लेकिन पार्टी ये साफ नहीं कर रही कि वो सीबीआई को स्वतंत्र बनाने के लिए कौन सा बिल लेकर आई थी...और अब वो क्या करेगी...क्या बीजेपी इसके लिए संविधान में संशोधन का प्रस्ताव लेकर आएगी? सिर्फ बीजेपी ही नहीं, पूरा एनडीए और सरकार की सहयोगी पार्टियां भी इस मुद्दे पर खामोश है।

यानी ये साफ है कि कोई भी पार्टी नहीं चाहती कि सीबीआई आजाद हो..ऐसे में सीबीआई को कोसने से क्या फायदा.....जब कोई संस्था किसी के अधीन होगी तो वो अपने मालिक को खुश करने के लिए ही काम करेगी..भले ही उसका मालिक कैसा भी क्यों ना हो? तो ऐसे में क्या सारा दोष सीबीआई और केंद्र सरकार पर मढ़ना उचित है ? क्या विपक्ष और दूसरी पार्टियां जो हमेशा नए मुद्दे की ताक में रहती हैं वो इसके लिए जिम्मेदार नहीं हैं?
                                                                                                  (प्रभाकर चंचल)                                          

2 टिप्‍पणियां:

  1. लोकपाल विधेयक पर राज्यसभा में हुई चर्चा को याद करिए। सीबीआई की चिंता सुनिश्चित करने के लिए सदस्यों ने कितने आंसू बहाए। सीबीआई तोता है या पोपेट ये तो अब जो दल सरकार में है और जो पहले सरकार में था दोनों ही ऐसी बातें विपक्ष में होते हुए करते रहते है. जो दल सत्ता के इर्द गिर्द घूमता रहता है उनके आंसू तो कभी सूखते ही नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने ताजा टिप्पणी में सरकार से कानून में संशोधन का आग्रह किया है। अब सुप्रीम कोर्ट कानून तो बना नहीं सकता। सो वो गाहे वगाहे ऐसी टिप्पणियां करता रहता है.

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  2. लेकिन सर सुप्रीम कोर्ट को अब इसका ख्याल सही तरीके से आया है...और सीबीआई को आजाद करने के लिए सरकार और विपक्ष दोनों को कुछ अलग करना होगा..नहीं तो आंदोलन तो कुचले जाते रहेंगे...सदन की कार्यवाही भी अपने फायदे के लिए स्थगित की जाती रहेगी...और कैंडल मार्च भी होते ही रहेंगे..लेकिन सरकार की मंशा के बगैर कोई बदलाव नहीं होगा..ये हिंदुस्तान है

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